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Friday, 2 December 2016

Sanchi Stupa

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Lord Buddha

1.   पूर्णमदः पूर्णमिदं पूर्णात्पुर्णमुदच्यते
पूर्णस्य पूर्णमादाय पूर्णमेवावशिष्यते 
 शान्तिः शान्तिः शान्तिः 

2.   असतो मा सद्गमय 
तमसो मा ज्योतिर्गमय 
मृत्योर्मा अमृतं गमय 
 शान्तिः शान्तिः शान्तिः 

3.   त्र्यम्बकं यजामहे 
सुगन्धिं पुष्टिवर्धनम्
उर्वारुकमिव बन्धनान् 
मृत्योर्मुक्षीय मामृतात् 

4.   सह नाववतु 
सह नौ भुनक्तु 
सह वीर्यं करवावहै 
तेजस्वि नावधीतमस्तु मा विद्विषावहै 
 शान्तिः शान्तिः शान्तिः 

5.   सर्वेशां स्वस्तिर्भवतु 
सर्वेशां शान्तिर्भवतु 
सर्वेशां पुर्णंभवतु 
सर्वेशां मङ्गलंभवतु 
 शान्तिः शान्तिः शान्तिः 

6.   सर्वे भवन्तु सुखिनः
सर्वे सन्तु निरामयाः 
सर्वे भद्राणि पश्यन्तु
मा कश्चिद्दुःखभाग्भवेत् 
 शान्तिः शान्तिः शान्तिः 

7.   भूर्भुवः स्वः
तत्सवितुर्वरेण्यं 
भर्गो देवस्य धीमहि
धियो यो नः प्रचोदयात् 

8.   उत्तिष्ठत जाग्रत प्राप्य वरान्निबोधत
  
क्षुरस्य धारा निशिता दुरत्यया दुर्गं पथस्तत्कवयो वदन्ति ।।

9.   नैनं छिन्दन्ति शस्त्राणि नैनं दहति पावकः चैनं क्लेदयन्त्यापो शोषयति मारुतः
10.         मात्रास्पर्शास्तु कौन्तेय शीतोष्णसुखदुःखदाः आगमापायिनोऽनित्यास्तांस्तितिक्षस्व भारत

11.         अशोच्यानन्वशोचस्तवं प्रज्ञावादाश्च भाषसे |
गतासूनगतासूंश्च नानुशोचिन्त पिण्डता: || 11||

12.           जायते म्रियते वा कदाचि- न्नायं भूत्वा भविता वा भूयः  
अजो नित्यः शाश्वतोऽयं पुराणो- हन्यते हन्यमाने शरीरे

13.         वासांसि जीर्णानि यथा विहाय नवानि गृह्णाति नरोऽपराणि।
तथा शरीराणि विहाय जीर्णा न्यन्यानि संयाति नवानि देही।।2.22।।

14.         नैनं छिन्दन्ति शस्त्राणि नैनं दहति पावकः
  चैनं क्लेदयन्त्यापो शोषयति मारुतः

15.         सुखदुःखे समे कृत्वा लाभालाभौ जयाजयौ  
ततो युद्धाय युज्यस्व नैवं पापमवाप्स्यसि ॥२-३८॥

16.         ध्यायतो विषयान्पुंसः संगस्तेषूपजायते  
संगात्संजायते कामः कामात्क्रोधोऽभिजायते
17.         क्रोधात भवति सम्मोहः सम्मोहात स्मृतिविभ्रमः। 
स्मृतिभ्रंशात बुद्धिनाशो बुद्धिनाशात प्रणश्यति

18.         कर्मण्येवाधिकारस्ते मा फलेषु कदाचन  
मा कर्मफलहेतुर्भुर्मा ते संगोऽस्त्वकर्मणि

19.         शुभं करोति कल्याणमारोग्यं धनसंपदा 
शत्रुबुद्धिविनाशाय दीपज्योतिर्नमोऽस्तुते 

20.         कर्पूरगौरं करुणावतार
संसारसारम् भुजगेन्द्रहारम् 
सदावसन्तं हृदयारविन्दे
भवं भवानीसहितं नमामि 

21.         गुरुर्ब्रह्मा गुरुर्विष्णुर्गुरुर्देवो महेश्वरः 
गुरुरेव परं ब्रह्म तस्मै श्रीगुरवे नमः ॥१॥

22.         वक्रतुण्ड महाकाय सूर्यकोटि समप्रभ 
निर्विघ्नं कुरु मे देव सर्वकार्येषु सर्वदा 

23.         सत्यमेव जयते नानृतं
सत्येन पन्था विततो देवयानः
येनाक्रमन्त्यृषयो ह्याप्तकामा
यत्र तत् सत्यस्य परमं निधानम् ॥६॥

SHIV TANDAV STROTAM
जटा टवी गलज्जल प्रवाह पावितस्थले, गलेऽवलम्ब्य लम्बितां भुजङ्ग तुङ्ग मालिकाम् |
डमड्डमड्डमड्डमन्निनाद वड्डमर्वयं, चकार चण्डताण्डवं तनोतु नः शिवः शिवम् ||||
जटा कटा हसंभ्रम भ्रमन्निलिम्प निर्झरी, विलो लवी चिवल्लरी विराजमान मूर्धनि |
धगद् धगद् धगज्ज्वलल् ललाट पट्ट पावके किशोर चन्द्र शेखरे रतिः प्रतिक्षणं मम ||||
धरा धरेन्द्र नंदिनी विलास बन्धु बन्धुरस् फुरद् दिगन्त सन्तति प्रमोद मानमानसे |
कृपा कटाक्ष धोरणी निरुद्ध दुर्धरापदि क्वचिद् दिगम्बरे मनो विनोदमेतु वस्तुनि ||||
लता भुजङ्ग पिङ्गलस् फुरत्फणा मणिप्रभा कदम्ब कुङ्कुमद्रवप् रलिप्तदिग्व धूमुखे |
मदान्ध सिन्धुरस् फुरत् त्वगुत्तरीयमे दुरे मनो विनोद मद्भुतं बिभर्तु भूतभर्तरि ||||
सहस्र लोचनप्रभृत्य शेष लेखशेखर प्रसून धूलिधोरणी विधूस राङ्घ्रि पीठभूः |
भुजङ्ग राजमालया निबद्ध जाटजूटक श्रियै चिराय जायतां चकोर बन्धुशेखरः ||||
ललाट चत्वरज्वलद् धनञ्जयस्फुलिङ्गभा निपीत पञ्चसायकं नमन्निलिम्प नायकम् |
सुधा मयूखले खया विराजमानशेखरं महाकपालिसम्पदे शिरोज टालमस्तु नः ||||
कराल भाल पट्टिका धगद् धगद् धगज्ज्वल द्धनञ्जयाहुती कृतप्रचण्ड पञ्चसायके |
धरा धरेन्द्र नन्दिनी कुचाग्र चित्रपत्रक प्रकल्प नैक शिल्पिनि त्रिलोचने रतिर्मम |||||
नवीन मेघ मण्डली निरुद् धदुर् धरस्फुरत्- कुहू निशीथि नीतमः प्रबन्ध बद्ध कन्धरः |
निलिम्प निर्झरी धरस् तनोतु कृत्ति सिन्धुरः कला निधान बन्धुरः श्रियं जगद् धुरंधरः ||||
प्रफुल्ल नीलपङ्कज प्रपञ्च कालिम प्रभा- वलम्बि कण्ठकन्दली रुचिप्रबद्ध कन्धरम् |
स्मरच्छिदं पुरच्छिदं भवच्छिदं मखच्छिदं गजच्छि दांध कच्छिदं तमंत कच्छिदं भजे ||||
अखर्व सर्व मङ्गला कला कदंब मञ्जरी रस प्रवाह माधुरी विजृंभणा मधुव्रतम् |
स्मरान्तकं पुरान्तकं भवान्तकं मखान्तकं गजान्त कान्ध कान्त कं तमन्त कान्त कं भजे ||१०||
जयत् वदभ्र विभ्रम भ्रमद् भुजङ्ग मश्वसद्विनिर्ग मत् क्रमस्फुरत् कराल भाल हव्यवाट् |
धिमिद्धिमिद्धिमिध्वनन्मृदङ्गतुङ्गमङ्गल ध्वनिक्रमप्रवर्तित प्रचण्डताण्डवः शिवः ||११||
स्पृषद्विचित्रतल्पयोर्भुजङ्गमौक्तिकस्रजोर्- – गरिष्ठरत्नलोष्ठयोः सुहृद्विपक्षपक्षयोः |
तृष्णारविन्दचक्षुषोः प्रजामहीमहेन्द्रयोः समप्रवृत्तिकः ( समं प्रवर्तयन्मनः) कदा सदाशिवं भजे ||१२||
कदा निलिम्पनिर्झरीनिकुञ्जकोटरे वसन् विमुक्तदुर्मतिः सदा शिरः स्थमञ्जलिं वहन् |
विमुक्तलोललोचनो ललामभाललग्नकः शिवेति मंत्रमुच्चरन् कदा सुखी भवाम्यहम् ||१३||
इदम् हि नित्यमेवमुक्तमुत्तमोत्तमं स्तवं पठन्स्मरन्ब्रुवन्नरो विशुद्धिमेतिसंततम् |
हरे गुरौ सुभक्तिमाशु याति नान्यथा गतिं विमोहनं हि देहिनां सुशङ्करस्य चिंतनम् ||१४||
पूजा वसान समये दशवक्त्र गीतं यः शंभु पूजन परं पठति प्रदोषे |
तस्य स्थिरां रथगजेन्द्र तुरङ्ग युक्तां लक्ष्मीं सदैव सुमुखिं प्रददाति शंभुः ||१५||
इति श्रीरावण- कृतम् शिव- ताण्डव- स्तोत्रम् सम्पूर्णम्